‘100 मीटर से नीचे की सभी भू-आकृतियों में खनन की अनुमति है’ कहना गलत, अरावली में कोई भी ढील नहीं दी गई: यादव

अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों (रेंज) की नई समान (यूनिफॉर्म) परिभाषा के बाद वहां खनन गतिविधियों के विस्तार की आशंकाओं के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने रविवार को स्पष्ट किया कि यह निष्कर्ष निकालना पूरी तरह गलत है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली सभी भू-आकृतियों में खनन की अनुमति दे दी गई है। उन्होंने कहा कि अरावली क्षेत्र में खनन को लेकर किसी भी तरह की कोई ढील नहीं..

‘100 मीटर से नीचे की सभी भू-आकृतियों में खनन की अनुमति है’ कहना गलत, अरावली में कोई भी ढील नहीं दी गई: यादव
22-12-2025 - 09:26 AM

नयी दिल्ली। अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों (रेंज) की नई समान (यूनिफॉर्म) परिभाषा के बाद वहां खनन गतिविधियों के विस्तार की आशंकाओं के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने रविवार को स्पष्ट किया कि यह निष्कर्ष निकालना पूरी तरह गलत है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली सभी भू-आकृतियों में खनन की अनुमति दे दी गई है। उन्होंने कहा कि अरावली क्षेत्र में खनन को लेकर किसी भी तरह की कोई ढील नहीं दी गई है।

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, अरावली के कुल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से केवल 0.19% हिस्सा ही खनन के लिए पात्र हो सकता है। शेष पूरा अरावली क्षेत्र संरक्षित और सुरक्षित है।”

अरावली पहाड़ियां और श्रेणियां भारत की सबसे प्राचीन भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से एक हैं, जो दिल्ली से हरियाणा और राजस्थान होते हुए गुजरात तक फैली हुई हैं। इनमें से केवल एक बहुत छोटा क्षेत्र ही वैध खनन पट्टों के अंतर्गत आता है। इस छोटे हिस्से में भी लगभग 90% खनन गतिविधियां राजस्थान में होती हैं, इसके बाद करीब 9% गुजरात में और लगभग 1% हरियाणा में। दिल्ली में किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि की अनुमति नहीं है।

यादव ने कहा कि अरावली रेंज को उन सभी भू-आकृतियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जो 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली दो सटे हुए पहाड़ियों के 500 मीटर के दायरे में स्थित हैं। इस 500 मीटर के क्षेत्र के भीतर मौजूद सभी भू-आकृतियां—चाहे उनकी ऊंचाई और ढलान कुछ भी हो—खनन पट्टा देने के उद्देश्य से पूरी तरह बाहर रखी गई हैं।

उन्होंने यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल सुंदरबन में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की बैठक के दौरान मीडिया के एक सवाल के जवाब में भी इस मुद्दे को विस्तार से स्पष्ट किया। सवाल हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों की समान नीति-स्तरीय परिभाषा को स्वीकार किए जाने, विशेष रूप से खनन नियमन के संदर्भ में था।

यादव ने दोहराया कि 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को घेरने वाली सबसे निचली बाध्यकारी समोच्च रेखा (lowest binding contour) के भीतर आने वाली सभी भू-आकृतियां—उनकी ऊंचाई और ढलान चाहे जो भी हों—खनन पट्टा देने के उद्देश्य से बाहर रखी गई हैं।

विपक्षी दलों ने हाल ही में समाप्त हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान इस मुद्दे को उठाया था और दावा किया था कि नई परिभाषा के चलते अरावली का बड़ा हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवंबर में केंद्र समर्थित परिभाषा को स्वीकार किए जाने के बाद कांग्रेस महासचिव और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसे अरावली पारिस्थितिकी तंत्र पर “गंभीर प्रहार” बताया था।

उन्होंने एक्स पर लिखा था, अरावली पहाड़ियां दिल्ली से हरियाणा और राजस्थान होते हुए गुजरात तक फैली हुई हैं। वर्षों से खनन, निर्माण और अन्य गतिविधियों के कारण, तमाम नियमों और कानूनों के उल्लंघन के साथ, इन्हें भारी नुकसान पहुंचाया गया है। अब ऐसा प्रतीत होता है कि यह संवेदनशील और विस्तृत पारिस्थितिकी तंत्र एक और बड़े झटके का शिकार होने जा रहा है।”

मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए जयराम रमेश ने कहा था, यह परिभाषा खनन को सीमित करने के लिए बताई जा रही है, लेकिन वास्तव में इसका मतलब यह होगा कि अरावली पहाड़ियों का 90% हिस्सा अब अरावली ही नहीं माना जाएगा। स्पष्ट रूप से सुप्रीम कोर्ट ने इस संशोधित परिभाषा को स्वीकार कर लिया है। यह अजीब है और इसके बहुत गंभीर पर्यावरणीय और जनस्वास्थ्य संबंधी परिणाम हो सकते हैं। इसकी तत्काल समीक्षा की जरूरत है।”

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए इस समान परिभाषा को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

हालांकि भूपेंद्र यादव ने रविवार को सभी से “भ्रम फैलाना बंद करने” की अपील की और यह भी समझाया कि राजस्थान सरकार वर्ष 2006 से इसी परिभाषा का पालन करती आ रही है।

पर्यावरण मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया कि अरावली क्षेत्र के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने विचार-विमर्श के दौरान खनन नियमन के लिए “स्थानीय राहत से 100 मीटर ऊपर” के समान मानदंड को अपनाने पर सहमति जताई थी, जैसा कि पहले से राजस्थान में लागू था। साथ ही इसे और अधिक वस्तुनिष्ठ और पारदर्शी बनाने पर सर्वसम्मति बनी।

मंत्रालय ने कहा, “100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को घेरने वाली सबसे निचली बाध्यकारी समोच्च रेखा के भीतर आने वाली सभी भू-आकृतियां—उनकी ऊंचाई और ढलान चाहे जो भी हों—खनन पट्टा देने के उद्देश्य से बाहर रखी गई हैं। इसी तरह, अरावली रेंज को 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली दो सटे हुए पहाड़ियों के 500 मीटर के दायरे में मौजूद सभी भू-आकृतियों के रूप में परिभाषित किया गया है। इस 500 मीटर के क्षेत्र में आने वाली सभी भू-आकृतियां खनन पट्टे से बाहर होंगी।”

मंत्रालय के अनुसार, अरावली पहाड़ियों को स्थानीय राहत से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली किसी भी भू-आकृति तथा उससे जुड़ी सहायक ढलानों के रूप में परिभाषित करने से पूरे पारिस्थितिकीय इकाई को संरक्षण मिलता है। इससे ढलानों और तलहटी क्षेत्रों का टुकड़ों-टुकड़ों में दोहन रुकता है, जो मिट्टी की स्थिरता, जल पुनर्भरण और वनस्पति आवरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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THE NEWS THIKANA, संपादकीय डेस्क यह द न्यूजठिकाना डॉट कॉम की संपादकीय डेस्क है। डेस्क के संपादकीय सदस्यों का प्रयास रहता है कि अपने पाठकों को निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ विभिन्न विषयों के सच्चे, सटीक, विश्वसनीय व सामयिक समाचारों के अलावाआवश्यक उल्लेखनीय विचारों को भी सही समय पर अवगत कराएं।