भारत–अमेरिका व्यापार: अगर कोई समझौता नहीं हुआ तो अमेरिकी टैरिफ़ धमकियों से निपटने की भारत की क्या योजना है..?
कई महीनों की बातचीत के बावजूद भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ़ घटाने को लेकर अब तक कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया है। ऐसे में भारत सरकार ने एक वैकल्पिक रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। जानकारों का कहना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊंचे शुल्क (ड्यूटी) से पैदा होने वाले संभावित जोखिमों से निपटने के लिए भारत पहले ही कुछ कदम..
नयी दिल्ली। कई महीनों की बातचीत के बावजूद भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ़ घटाने को लेकर अब तक कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया है। ऐसे में भारत सरकार ने एक वैकल्पिक रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। जानकारों का कहना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊंचे शुल्क (ड्यूटी) से पैदा होने वाले संभावित जोखिमों से निपटने के लिए भारत पहले ही कुछ कदम उठाने लगा है।
सरकार एक साथ दो प्रमुख लक्ष्यों पर काम कर रही है। पहला, अमेरिका के साथ ऐसा व्यापार समझौता करना, जिससे मौजूदा कारोबारी व्यवस्थाएं बनी रहें। दूसरा, यदि टैरिफ़ बरकरार रहते हैं तो उनके दुष्प्रभाव को कम करने के लिए सुधारों और नीतिगत उपायों को लागू करना।
विशेषज्ञों के अनुसार, इन कदमों का उद्देश्य यह है कि इनके असर जल्द दिखने लगें और यदि भविष्य में कोई औपचारिक समझौता होता है तो अर्थव्यवस्था को अतिरिक्त समर्थन मिल सके।
ये नीतिगत फैसले अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भी एक मजबूत संकेत दे रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि सरकार के ये कदम भारत को निवेश के लिहाज से और आकर्षक बनाते हैं, जिससे अमेरिकी प्रशासन पर परोक्ष दबाव भी पड़ता है।
अमेरिकी नीति-निर्माताओं ने पहले यह संकेत दिया था कि भारत पर अमेरिकी कारोबारी और निवेश हितों का दबाव बन सकता है। भारत की यह रणनीति इसी दबाव को संतुलित करने और अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश को दर्शाती है।
इस अवधि के दौरान लागू किए गए सुधारों में परमाणु क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलना और बीमा कंपनियों में 100 प्रतिशत विदेशी स्वामित्व की अनुमति देना शामिल है। इसके अलावा, भारत के प्रतिभूति बाजार कानूनों को एकीकृत करने के प्रस्ताव भी लाए गए हैं, जिनका उद्देश्य नियामक ढांचे को आधुनिक बनाना और व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, ये कदम संभावित रूप से सैकड़ों अरब डॉलर के निवेश को आकर्षित कर सकते हैं और अगले दो दशकों में भारत को विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के दीर्घकालिक लक्ष्य को समर्थन दे सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, रिपोर्टों में कहा गया है कि बड़ी कंपनियां इन सुधारों का लाभ उठाते हुए उत्तर भारत के राज्यों में वाणिज्यिक परमाणु परियोजनाओं में निवेश की योजना बना रही हैं।
पिछले चार महीनों में सरकार ने साल की धीमी शुरुआत के बाद नीतिगत कदमों में तेजी लाई है। इनमें कर कटौती, लंबे समय से लंबित श्रम कानूनों में सुधार और कई देशों के साथ व्यापार वार्ताओं को तेज करना शामिल है। अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ़ के प्रभाव को कम करने के लिए भारत ने यूरोपीय संघ सहित अन्य साझेदारों के साथ बातचीत की है और हाल ही में ओमान के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है। यह इस साल यूनाइटेड किंगडम के बाद भारत का दूसरा ऐसा समझौता है।
ये नीतिगत फैसले ऐसे समय में लिए गए हैं, जब भारत को जटिल विदेश नीति चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें पाकिस्तान के साथ सैन्य तनाव और अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ताएं शामिल हैं।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि हालिया कदम नीतिगत विविधीकरण, संरचनात्मक सुधारों और दीर्घकालिक पूंजी आकर्षित करने के प्रयासों का संकेत देते हैं। उन्होंने 2026 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। चालू वित्त वर्ष के लिए विकास अनुमान को भी बढ़ाया गया है, जबकि अगले वर्ष लगभग 6.5 प्रतिशत की मध्यम वृद्धि की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि यह दर 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के लिए जरूरी माने जाने वाले 8 प्रतिशत से अब भी कम है।
बैकअप रणनीति की जरूरत इसलिए भी पड़ी है क्योंकि ऊंचे टैरिफ़ का सीधा असर भारत के निर्यात पर पड़ रहा है, खासकर उसके सबसे बड़े विदेशी बाजार अमेरिका में। बातचीत जारी रहने के बावजूद टैरिफ़ घटाने को लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। इस बीच भारतीय रुपया इस साल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5 प्रतिशत से अधिक कमजोर हो चुका है और यह क्षेत्र की सबसे कमजोर मुद्राओं में शामिल हो गया है।
निर्यात पर निर्भर प्रमुख राज्यों, खासकर तमिलनाडु जो वस्त्र, जूते और इलेक्ट्रॉनिक्स का बड़ा केंद्र है..ने चेतावनी दी है कि लगातार ऊंचे टैरिफ़ स्थानीय उद्योगों और कारोबार को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
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