सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयानः बिहार की सभी सीटों पर समान कारण हो तो SIR में ECI की गलती नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यदि बिहार राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) करने का कारण समान है, तो चुनाव आयोग (ECI) को इस प्रक्रिया के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत बिहार में चल रहे SIR के खिलाफ दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही..
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यदि बिहार राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) करने का कारण समान है, तो चुनाव आयोग (ECI) को इस प्रक्रिया के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत बिहार में चल रहे SIR के खिलाफ दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई सुर्या कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, “यह मतदाता सूची का सामान्य अद्यतन नहीं, बल्कि विशेष पुनरीक्षण है। कोई भी प्रक्रिया जो निष्पक्ष और पारदर्शी हो, चल सकती है—जब तक यह साबित न हो जाए कि चुनाव आयोग के पास यह अधिकार ही नहीं है।”
याचिकाकर्ताओं के तर्क पर कोर्ट की प्रतिक्रिया
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्षकारों की ओर से दलील दी कि SIR असंवैधानिक है, क्योंकि नागरिकता निर्धारित करना चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
सिंघवी ने आगे कहा कि मान लें कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (ROPA), 1950 की धारा 21(3) विशेष पुनरीक्षण की अनुमति देती है, तो भी यह प्रक्रिया निर्वाचन-क्षेत्र और व्यक्ति-विशेष होनी चाहिए, न कि एक साथ पूरे राज्य पर लागू।
धारा 21(3) के अनुसार, “चुनाव आयोग किसी भी समय, कारण दर्ज करते हुए, किसी भी निर्वाचन क्षेत्र या उसके किसी भाग में विशेष पुनरीक्षण का निर्देश दे सकता है।”
पीठ की दलील: समान कारण हों तो पूरे राज्य में लागू करना जरूरी
कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा, “अगर आयोग को पता चले कि किसी राज्य में बड़ी संख्या में मृत मतदाता सूची में हैं, तो क्या वह सिर्फ 50 सीटों पर कार्रवाई कर सकता है? अगर कारण पूरे राज्य में समान हैं, तो केवल कुछ सीटें चुनना भेदभाव होगा।”
कोर्ट ने यह भी कहा, “ऐसी स्थिति में आयोग को हर सीट पर SIR करना ही पड़ेगा, यदि ऐसे कारण मौजूद हैं। आप ये तर्क दे सकते हैं कि कारण दर्ज नहीं किए गए, पर्याप्त नहीं हैं, या आयोग के पास शक्ति ही नहीं है।”
SIR को ‘नागरिकता परीक्षण’ बताकर सिंघवी का विरोध
सिंघवी ने कहा कि बीते छह महीनों से सुप्रीम कोर्ट SIR को “हीलिंग टच” दे रही है, लेकिन चुनाव आयोग के पास यह प्रक्रिया करने की शक्ति ही नहीं है।
उन्होंने कहा, “ROPA में कहां लिखा है कि आयोग 12–13 दस्तावेज मांग सकता है? यह फोटो सत्यापन नहीं, बल्कि नागरिकता तय करने का प्रयास है। देश के 75 वर्षों में कभी ऐसा सामूहिक सत्यापन नहीं हुआ।”
उन्होंने कहा कि यदि आयोग सामूहिक अधिकार का दावा करेगा, तो वह पूरे देश में इसी तरह का अभियान चला सकता है, “और इस तरह ECI एक ‘नागरिकता न्यायाधिकरण’ बन जाएगा।”
सिब्बल का तर्क: एक शिक्षक यानी BLO नागरिकता तय नहीं कर सकता
सिब्बल ने कहा कि इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा खतरा यह है कि एक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO), जो कि एक शिक्षक होता है, नागरिकता तय करेगा। उन्होंने कहा, “अगर नाम सूची से हट गया तो व्यक्ति कानून के तहत मिलने वाले सभी लाभों से वंचित हो जाएगा। ECI कानून को पूरक कर सकता है, बदल नहीं सकता। इसलिए यह पूरी प्रक्रिया असंवैधानिक है।”
उन्होंने यह भी कहा कि ROPA और नियमों में नागरिकता का बोझ मतदाता पर डालने का प्रावधान नहीं है। SIR को 2003 की मतदाता सूची में माता-पिता के नाम वाले लोगों को छूट दी गई है, परंतु विवाह या स्थानांतरण के मामलों में दस्तावेज उपलब्ध कराना कठिन है।
उन्होंने कहा, “अगर कोई व्यक्ति अवैध रूप से रह रहा है, उसे वोट का अधिकार नहीं है—परंतु वैधानिक नागरिकों का क्या होगा?”
अगली सुनवाई मंगलवार को
कोर्ट ने कहा कि वह इस मुद्दे को “तर्कशीलता” और “प्रक्रियात्मक न्याय” के आधार पर देख रही है। सुनवाई अगले मंगलवार जारी रहेगी।
इसके अलावा, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पुदुचेरी में भी SIR को चुनौती दी गई है। इन मामलों की सुनवाई भी आने वाले हफ्तों में होगी।
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